सत्य सनातन धर्म में जो महत्त्व मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का है, वैसा और किसी भी हिन्दु देवी देवता का नहीं है। भारत वर्ष की पवन भूमि त्रेता युग से लेकर कलयुग तक भगवान राम से प्रारम्भ और भगवान राम में ही अंत होती है। हिन्दु जीवन अगर राम नाम के बिना निष्प्राय है तो अयोध्या की महत्ता उतनी ही महत्तवपूर्ण और उतनी ही सार्वगर्भित है।
अयोध्या को भगवान श्रीराम और रघुकुल के दिग्दंत पूर्वज और सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण में जन्मभूमि की शोभा एवं महत्ता की तुलना दूसरे इन्द्रलोक से की है। धन-धान्य व रत्नों से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुंबी इमारतों के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है। यह मान्यता है कि सरयू नदी जहा पर ध्यान लगाने कि मान्यता है, जैसा कि हिन्दु धर्म में कहा गया है कि गंगा में स्नान का, यमुना में पान का और सरयू में ध्यान का अति अधिक महत्व है और जब विश्व में शहरों कि कल्पना भी नहीं थी तब अयोध्या एक पूर्ण विकसित और समृद्ध और समर्थ नगरी थी इसीलिए अयोध्या का अर्थ है कि जिसे कोई भी युद्ध में नहीं जीत सकता।
यह उल्लेख मिलता है कि १०० ईसा पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य एक दिन भ्रमण करते हुए अयोध्या पहुंच गए। महाराज विक्रमादित्य को इस भूमि में कुछ चमत्कारिक शक्ति का आभास हुआ। तब उन्होंने खोज आरंभ की और पास के योगी व संतों की कृपा से उन्हें ज्ञात हुआ कि यह श्रीराम की अवध भूमि है। उन संतों के निर्देश से सम्राट ने यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि बनवाए। शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। पुष्यमित्र का एक शिलालेख अयोध्या से प्राप्त हुआ था जिसमें उसे सेनापति कहा गया है तथा उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञों के किए जाने का वर्णन है। अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और तत्पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी।
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